(Info) बुंदेलखंड में 20 मार्च को विश्व गौरैया दिवस और जल दिवस मनाया जायेगा


बुंदेलखंड में 20 मार्च को विश्व गौरैया दिवस और जल दिवस मनाया जायेगा


बीस मार्च को बाँदा में लगेगी किसान संसद- आने वाली बीस मार्च को विश्व गौरैया दिवस और जल दिवस पर बुंदेलखंड के किसानो का जमावड़ा होने जा रहा है l जिला बाँदा के नरैनी तहसील के ग्राम मोहनपुर में इस दिन एक पर्यावरण किसान संसद का आयोजन किया जा रहा है l जिसमे जुटे हुए किसान प्रकृति के सभी जीवो की समान हिस्सेदारी का विस्तार देने के लिए गौरैया चिड़िया का ब्याह कर रहे है | इस प्रकृति सम्यक विवाह का मकसद प्रकृति के बीच जाकर नृत्य- उत्सव मनाये जाने को और अधिक मजबूत करना है |

इस किसान संसद में हाल ही में केंद्र सरकार के किसान विरोधी कयास को बल देने वाले भूमि अधिग्रहण बिल पर भी संवाद किया जायेगा l बुंदेलखंड में बढ़ते जल संसाधनों के दोहन,बेमौसम बारिश और जलवायु परिवर्तन के मुद्दों पर चिन्तन - मंथन होगा l किसान को मजदूर न बनकर किसानी के प्रति सजीदा होने के विषयों पर बाते होगी l इस किसान संसद के मेजबान ग्राम मोहनपुर के बाशिंदे सुमनलता पटेल और यशवंत पटेल सहित,सामाजिक कार्यकर्ता दिनेश पाल,राघवेन्द्र मिश्रा उपस्थित रहेंगे |

क्यों विलुप्त हो गई घरेलू गौरैया -

घरों को अपनी चीं- चीं से चहकाने वाली गौरैया अब दिखाई नहीं देती। इस छोटे आकार वाले खूबसूरत पक्षी का कभी इंसान के घरों में बसेरा हुआ करता था और बच्चे बचपन से इसे देखते बड़े हुआ करते थे। अब स्थिति बदल गई है। गौरैया के अस्तित्व पर छाए संकट के बादलों ने इसकी संख्या काफी कम कर दी है और कहीं-कहीं तो अब यह बिल्कुल दिखाई नहीं देती।

पहले यह चिड़िया जब अपने बच्चों को चुग्गा खिलाया करती थी तो इंसानी बच्चे इसे बड़े कौतूहल से देखते थे। लेकिन अब तो इसके दर्शन भी मुश्किल हो गए हैं और यह विलुप्त हो रही प्रजातियों की सूची में आ गई है।

बुंदेलखंड के जिला हमीरपुर (राठ) निवासी और वन्य जीव कार्यकर्ता महिर्षि कुमार तिवारी कहते है कि के मुताबिक गौरैया की आबादी में 60 से 80 फीसदी तक की कमी आई है। यदि इसके संरक्षण के उचित प्रयास नहीं किए गए तो हो सकता है कि गौरैया इतिहास की चीज बन जाए और भविष्य की पीढ़ियों को यह देखने को ही न मिले।

ब्रिटेन की ‘रॉयल सोसायटी ऑफ प्रोटेक्शन ऑफ बर्डस’ ने भारत से लेकर विश्व के विभिन्न हिस्सों में अनुसंधानकर्ताओं द्वारा किए गए अध्ययनों के आधार पर गौरैया को ‘रेड लिस्ट’ में डाला है।

आंध्र यूनिवर्सिटी के किए गए अध्ययन के मुताबिक गौरैया की आबादी में करीब 60 फीसदी की कमी आई है। यह ह्रास ग्रामीण और शहरी- दोनों ही क्षेत्रों में हुआ है।

पश्चिमी देशों में हुए अध्ययनों के अनुसार गौरैया की आबादी घटकर खतरनाक स्तर तक पहुंच गई है।

गौरैया पर मंडरा रहे खतरे के कारण ही लखीमपुर खीरी के वन्य जीएव प्रेमी कृष्ण कुमार मिश्र और इन्ही जैसे अपवाद लोगों के प्रयास से आज दुनिया भर में 20 मार्च को विश्व गौरैया दिवस मानाया जाता है, ताकि लोग इस पक्षी के संरक्षण के प्रति जागरूक हो सकें। ये प्रयास अब बुंदेलखंड तक पहुँच रहे है |

अध्ययन के मुताबिक मोबाइल टावरो के रेडियेशन किरणों, खेती में कीटनाशको के बढ़ते प्रयोग, गौरैया,बया चिड़िया के आवासीय ह्रास, आहार की कमी,घरो का कम प्राकृतिक स्वरूप, मुंडेर का घटना और मोबाइल अस्तित्व के लिए खतरा बन रही हैं।

पर्यावरण से जुड़े लोग मानते है कि गौरैया को लेकर जागरूकता पैदा किए जाने की जरूरत है l क्योंकि कई बार लोग अपने घरों में इस पक्षी के घोंसले को बसने से पहले ही उजाड़ देते हैं। कई बार बच्चे इन्हें पकड़कर पहचान के लिए इनके पैर में धागा बांधकर इन्हें छोड़ देते हैं। इससे कई बार किसी पेड़ की टहनी या शाखाओं में अटक कर इस पक्षी की जान चली जाती है।

इतना ही नहीं कई बार बच्चे गौरैया को पकड़कर इसके पंखों को रंग देते हैं जिससे उसे उड़ने में दिक्कत होती है और उसके स्वास्थ्य पर भी विपरीत असर पड़ता है।

बकौल महिर्षि कुमार तिवारी गौरैया को फिर से बुलाने के लिए लोगों को अपने घरों में कुछ ऐसे स्थान उपलब्ध कराने चाहिए जहां वे आसानी से अपने घोंसले बना सकें और उनके अंडे तथा बच्चे हमलावर पक्षियों से सुरक्षित रह सकें।

उनका मानना है कि गौरैया की आबादी में ह्रास का एक बड़ा कारण यह भी है कि कई बार उनके घोंसले सुरक्षित जगहों पर न होने के कारण कौए जैसे हमलावर पक्षी उनके अंडों तथा बच्चों को खा जाते हैं।

By: Ashish Sagar