(Article) तालाबो से जुडी है हमारी बुनियादे By आशीष सागर

तालाबो से जुडी है हमारी बुनियादे

बाँदा के लगभग एक के बाद एक तालाब मिटाए जा रहे है या फिर दबंग - दादुओ के कब्जे का दंश झेल रहे है , तालाबो को पुनः एक बार संजीदगी से बचाने को लेकर उत्तर प्रदेश सरकार ने रुख किया है लेकिन क्या वे इसमे सफल हो पायेगे वो भी जब की सुप्रीम कोर्ट के आदेश भी महज सरकारी रूलिंग बनकर रह गए हो , बाँदा के आज करीब 4540 तालाबो की आबरू डार्क जोन में है जबकि बुंदेलखंड के 20,000 तालाबो की भ्रूण हत्या आला अधिकारियो के नाक के नीचे की जा रही है ,  मगर क्या नेता और क्या सामाजिक मुहीम का अवसरी हल्ला भी इनको नही बचा पाया है .....

सन 1857 के पहले बाँदा नवाब जुल्फिकार अली बहादुर ने अपने कार्यकाल में कई तालाबो का निर्माण करवाया था , उन दिनों बाँदा में सूखा पड़ने के चलते नवाब ने लोगो को काम मुहैया हो सके इसलिए तालाबो का व्रहद निर्माण करवाया था ...बाँदा के प्राचीन नवाब टैंक तालाब से चार फलांग दूर स्थित ये बाबू साहब गोरे का तालाब है,यह नवाब टैंक से भी पुराना इतिहास रखता है , कहते है इस अठारह बीघा के तालाब का निर्माण बाँदा नवाब ने लोगो को जल संकट से बचाने और रोजगार के नजरिये से करवाया , काम चलता रहा , बाबू साहब जिनको उस समय बापू के नाम से भी जाना जाता था , इस तालाब की निगरानी में थे और वे नवाब साहब के कारिन्दा / खजांची भी थे ....एक दिन बाँदा नवाब जब निर्माणधीन तालाब को देखने के लिए गए तो रास्ता जानने के लिए बघ्घी रोकी और लोगो से पूछा की तालाब कहा है ?

तब उत्तर मिला की बाबू साहब का तालाब - हा ,हा यही बन रहा है , नवाब तालाब के किनारे गए और उसको देखा भी इसी तालाब के दूसरे किनारे पर नवाब ने एक कोठी भी बनवाई थी , बाँदा नवाब जब वापस लोटे तो विचार किया कि तालाब तो मैंने बनवाया है लेकिन नाम कारिन्दे / खजांची का हो रहा है बस वही बाबू साहब  तालाब का काम रुकवाया गया और इसके बाद ही नवाब टैंक बनने का कार्य शुरू किया गया जिसको बाँदा नवाब जुल्फिकार अली ने खुद खड़े होकर बनवाया था ....यानि तालाब नवाब का और शोहरत मिली खजांची को.

By : - आशीष सागर