Bundeli Short Story - Ummid (बुन्देली कहानी : उम्मीद)

 

Bundeli Short Story - Ummid (बुन्देली कहानी : उम्मीद)


बुन्देली कहानी : उम्मीद:

रघु खेत की मेंड़ पर बेठो बीड़ी पी रव हतो ,
तब ई ओकी पत्नी भग्गो खाना ले के आ गई हती ,
काय पप्पू के पापा बीड़ी के पी रये रोटी ले आये सो खा लेव, 
कित्ती बेरा कहि है के जा बीड़ी नई पियो करे नुकसान करत है ,
पर तुम तो हमाई बात मानत नई हों?
 
रघु बोले ,अब दिन एक दो बेरा तो पीने परत है
धीरे धीरे आदत मिट है सो कबहुँ कबार पी लेते हैं।
भग्गो खेत की तरफ देख केँ बोली काय पप्पू के पापा
ई बेरे तो अपनी चना के फसल बहोत नोनी भई है।
कऊ अच्छी बन गई तो अपने सब काम बन जे हैं।
 
रघु बोलो,
अच्छी फसल बन गई तो सबरो कर्जा चूक जे है अपनो
और अपनी मोड़ी को ब्याव तो  सोई करने है अपन खों।
सच्ची के रये भग्गो बोली।
रघु रोटी खा के काम में लग ओ भग्गो घर खो चली गई।
संजा बेरा होवे बारी हती तबई लों इत्ती जोर से पानी बरष गओ और खूब ई ओरे गिरन लगे 
और देखतई देखत सबरी फसल चौपट हो गई।
 
रघु तो देख कें रौंन लगो।
जैसे तैसे घरे पोंचो सबरी बात भग्गो खों बताई के पूरी फसल आड़ी हो गई अब तो कछु नहि बचो।
जा बात सुनत ई से भग्गो तो बेहोश हो गई दतोरी बंध गई
सबरे मुहल्ला बारे जुर गए।
 
रघु खूब रौंन लगो अरे जो का हो गयो रे।
सबरी उम्मीदों पे पानी पर गयो रे।
बड़े दाऊ आ गए रघु ने रौ
सब जनों को नुकसान भओ है । 
तुम चिंता नई करो भग्गो खों अस्पताल ले चलो
भग्गो खो बैलगाड़ी पे धर कें अस्पताल ले गए मनों गली में ऊके प्रान निकर गए।
 
रघु तो फ़ूट फ़ूट केन रौंन लगो हम तो बरबाद हो गए अब तो सब कछु चलो गयो हमाव।
अब सबरी उम्मीदें मिट गई।
बड़े दाऊ बोले - अब किस्मत में जो दुख लिखो तो अब का करिये।
 
रचनाकार : जयंती सिंह सागर मध्यप्रदेश