मेजर ध्यानचंद जन्मदिन 29अगस्त : भारत का राष्ट्रीय खेल दिवस by Shri Virag Gupta

Dhyan Chand Hockey Prodigy India

मेजर ध्यानचंद दद्दा , बुन्देलखण्ड की धरती के बेमिसाल लाल हैं जिन्होंने बाल्मीकि, तुलसीदास, रानी लक्ष्मीबाई की परम्परा में भारतीय इतिहास में बुन्देलखण्ड को गौरवशाली स्थान प्रदान किया | एक बार ध्यानचंद गोल नहीं कर पा रहे थे उन्होंने रैफरी से कहा कि गोल पोस्ट की दोबारा नाप कराई जाये और नाप कराने पर गोल पोस्ट गलत निकला और उनके सभी गोल सही साबित हुए | कुशलता और आत्मविश्वास के ऐसे उदहारण इतिहास में विरले ही होंगे | खेल में निपुणता की किवदन्तियां देश-विदेश में इतनी मशहूर हो गयी कि लोग उन्हें खिलाड़ी की बजाय हाँकी का जादूगर मानने लगे| जनश्रुतियों के अनुसार सुविधाओं और मैदान के अभाव में ध्यानचंद, रेलवे ट्रैक के उपर हाँकी से गेंद को मरते थे और इस अभ्यास से उन्होंने इतनी विशेषज्ञता हासिल कर ली कि गेंद उनके हाँकी स्टिक के इशारे पर नाचती थी |यह जादुई हाँकी का ही कमाल था, कि हाँलैंड में यह जाँच करने के लिए कि क्या उनकी हाँकी में चुम्बकीय पदार्थ लगा है, ध्यानचंद कि स्टिक को तोड़ दिया था | जापानियों को यह संदेह था कि ध्यानचंद की हाँकी स्टिक में गोंद लगा हुआ है,उन्हें भी जाँच के बावजूद कुछ नहीं मिला| जर्मनी में एडोल्फ हिटलर ने संदेह करने के बजाय उनकी क्षमता को आंक लिया तथा उन्हें जर्मन नागरिकता के साथ जर्मन सेना में कर्नल का पद देकर लुभाने की कोशिश की पर देश की धरती का यह सपूत उस प्रलोभन के आगे नहीं झुका | ब्रैडमैन को जब पता चला कि ध्यानचंद ने आस्ट्रेलिया-न्यूजीलैंड के दौरे में 201गोल दागे तो उनकी टिप्पणी थी, यह किसी हाँकी खिलाड़ी ने बनाए या क्रिकेट के बल्लेबाज द्दारा बनाया गया रन |
हंगरी,अमेरिका,जापान को रौंद कर भारत ने सेमीफाइनल में फ्रांस को हराया और बिना एक गोल खाये बर्लिन ओलंपिक फाइनल में पहुँचने का गौरव हासिल किया जहाँ जर्मनी से उसकी भिडंत 15 अगस्त 1936 को होनी थी | भारतीय टीम में खलबली थी और मैदान में हिटलर की मौजूदगी की खबर से भारतीय टीम में डर और निराशा का माहौल था | तब ड्रेसिंग रूम में हाँकी टीम की मैनेजर की उपस्थिति में कप्तान ध्यानचंद ने सभी खिलाडियों को तिरंगे झण्डे की शपथ दिलाई | आजादी के 11वर्ष पूर्व 1936 में जब भारत का कोई ओपचारिक ध्वज भी नहीं था, उस समय भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के ध्वज के माध्यम से 15 अगस्त के दिन ध्यानचंद ने भारतीय टीम में राष्ट्रीयता का एक ज्वार पैदा कर दिया | बर्लिन के अखबारों में और शहर में ऐसे पोस्टर लग गये कि भारत के जादूगर के मैच को देखने के लिए लोग हाँकी मैच देखने जरूर जायें |एक दिन पहले बारिश की वजह से मैदान गीला था और बिना रबड़ के जूतों के फिसलने के कारण ध्यानचंद ने हाफ टाइम के बाद जूते उतार कर नंगे पांव ही खेलना शुरू किया |जर्मनी को हारता देख हिटलर दर्शक दीर्धा से चला गया | नंगे पांव खेलते हुए ध्यानचंद ने जर्मन टीम के ऊपर गोल दागने शुरू किए और फाइनल मैच में भारत ने जर्मनी को 8-1 से रौद दिया |
उनके जन्म दिन 29अगस्त को भारत का राष्ट्रीय खेल दिवस घोषित किया गया जिस दिन खेलों में उत्कृष्ठ प्रदर्शन के लिए राष्ट्रीय पुरुस्कार अर्जुन और द्रोणाचार्य पुरुस्कार प्रदान किये जाते है | वियना में ध्यानचंद की चार हाथों में चार हाँकी स्टिक लिए एक मूर्ती लगाई गई और दिखाया गया कि ध्यानचंद कितने जबरदस्त खिलाड़ी थे |1951 में नेशनल स्टेडियम में उनका राष्ट्रीय सम्मान हुआ और तत्पश्चात भारतीय ओलम्पिक संघ ने ध्यानचंद को शताब्दी का खिलाड़ी भी घोषित किया |
आज के दौर में यह कल्पना से परे है पर उस वक्त अगर टीवी और इंटरनेट का युग होता तो इस घटना से पूरा भारतीय उप महाद्दीप ध्यानचंद के प्रति गर्व से झूम उठता उस परिप्रेक्ष्य में आज के खेल और खिलाडियों की उपलब्धियाँ ध्यानचंद के त्याग और गौरव गाथा के आगे बहुत बौनी नजर आती है | 2013-2014 में अनेक दलों के सांसदों तथा झाँसी से तत्कालीन केन्द्रीय मंत्री के आग्रह पर भारत सरकार के खेल मंत्रालय ने मेजर ध्यानचंद का नाम भारत रत्न के लिए प्रस्तावित किया परन्तु आखरी समय में उनकी बजाय सचिन तेंदुलकर को इस सम्मान से नवाजा गया | सचिन निसंदेह क्रिकेट के बेताज बादशाह है और इतने बड़े कि उन्हें भारतीय संसद के सर्वोच्च सदन की कार्यवाही में जाने का भी समय नहीं है |वहीँ ध्यानचंद ने भारत देश के लिए हिटलर के प्रस्ताव को ठुकराते हुए आखरी समय मुफलिसी में गुजारना मंजूर कर एम्स के जनरल वार्ड में आखिरी सांस ली और झाँसी में उनका अंतिम संस्कार हुआ. 
मेजर ध्यानचंद भारत की धरती के सच्चे सपूत और रत्न थे जिन्होंने विश्व में भारत का अप्रितम सम्मान बढाया | भारत का वह रत्न जिसने हाँकी में भारत को अंतरष्ट्रीय सम्मान दिलाने के साथ भारतीय सेना के वीर जवान के तौर पर इतिहास के सबसे बड़े तानाशाह हिटलर को उसके गढ़ में चुनौती देकर पराजित किया. नई सरकार द्वारा भारत-रत्न देने से ध्यानचंद के साथ आखरी समय में किये गये सरकारी दुर्व्यहार का ना सिर्फ राष्ट्रीय प्रायश्चित हो सकेगा बल्कि भारत रत्न को भी एक नयी गरिमा मिलेगी | आज २९ अगस्त को उनको जयन्ती के अवसर पर देश और नयी सरकार की यही सच्ची श्रधांजलि होगी |

by Virag Gupta
Delhi