(News) : समाजवाद का ये ही नारा, नही मरा किसान हमारा !

 समाजवाद का ये ही नारा, नही मरा किसान हमारा !

विधान सभा सत्र में उत्तर प्रदेश के बाँदा जिले से कांग्रेस के विधायक दलजीत सिंह ने और हमीरपुर से भाजपा विधायक साध्वी निरंजन ज्योति ने बुंदेलखंड में किसान आत्महत्या और कर्ज से खुदकुशी का मामला प्रश्नकाल में उठाया ।

साध्वी निरंजन ने बाकायदा किसानो के नाम गिनवाकर सदन से पूछा कि बुंदेलखंड का किसान कर्ज से टूट कर आत्महत्या क्यों कर रहा है ? अब तक कितने किसानो ने बुंदेलखंड में आत्महत्या की है ?

उन्होंने राजस्व मंत्री से जानना चाहा कि किसानो का इस बेमोसम बारिस से कितना नुकसान हुआ ए किसान को कितना मुआवजा दिया जायेगा और कब घ् इस पर जवाब में सपा के शिवपाल सिंह यादव ने कहा कि बुंदेलखंड का आज तक कोई किसान कर्ज से नहीं आत्महत्या किया है ! जहाँ तक कर्जमाफी का सवाल है तो समाजवादी सरकार ने बुंदेलखंड में 29928 किसानो का 62 करोड़ 82 लाख 74 हजार 617 रुपया कर्जा माफ़ किया है ! यहाँ ये भी बतलाना है कि बुंदेलखंड का अधिकतर किसान बड़े बैंक मसलन एसबीआई, इलाहाबाद यू. पी. ग्रामीण बैंक अन्य का कर्जा लिए है जबकि न के बराबर किसान कापरेटिव बैंक से कर्जा लिए है जिसका कर्जा समाजवादी सरकार ने माफ़ी किया है । चुनाव पूर्व इसी सरकार के नेताओ ने किसानो का पूरा कर्जा माफ़ किये जाने की घोषणा की थी स यह समाजवादी नेता और राजस्व मंत्री कहते है कि बुंदेलखंड में कोई किसान कर्ज से नही मरा लेकिन हकीकत यह है कि अब तक 3269 किसान आत्महत्या किया है । सरकार ने कभी ये माना ही नही कि कोई किसान कर्ज से मर रहा है ये सरकार रही हो या और कोई । मगर हाँ जब जिसकी सरकार नही होती है तो अवश्य विपक्षी दल किसान को मुद्दा बनाने का काम कर रहा होता है सत्ता आने पर सब भूल जाते है किसान को । आगामी लोकसभा चुनाव 2014 में हर पार्टी का अपना चुनावी मेनिफेस्टो - घोषणा पत्र बनेगा पर उनमे किसानो कितनी जगह मिलती है ये देखने वाली बात होगी स माननीय लोगो के अगर पिछले 5 साल के रिपोर्ट कार्ड देखे जाये तो शायद कोई सांसद अपने मतदान क्षेत्र में एक माह भी लगातार रहा हो ये बड़ी बात है स किसान चुनाव में वोटो की मंडी बनकर सामने आता है एक बार फिर छले जाने के लिए स क्यों हर लोकसभा या विधान सभा क्षेत्र का घोषणा पत्र वहां की आवाम या किसान के साथ बैठकर तैयार नही किया जाता है ? आखिर क्यों जनता से ये नही पूछना वाजिब समझा जाता है कि आपको विकास किन शर्तो पर और किस स्वरुप में चाहिए ? नपुंसक बीजो पर खेतो में तैयार होती फासले और फिर ओला, पाला या सूखे से टूटे खेतो की जान लेने का ज़िम्मेदार कोन है ? यह सियासत को ही तय करना पड़ेगा, किसान को गर अन्नदाता मानकर चलते है तो चुनाव के पहले और बाद में उसको कृषि नीति में सहभागी नियोक्ता के रूप में रखना ही चाहिए  ।

इस रिपोर्ट के साथ बाँदा के स्टेट बैंक के सबसे बड़े बकायेदार की किसान सूचि है । जिसमे बाँदा के एक प्रगति शील किसान प्रेम सिंह , बड़ोखर खुर्द से उनके लड़के मनोदय सिंह पुत्र प्रेम सिंह के नाम पर दर्ज है जो एक बड़े , संसाधन संपन्न किसान है । यह आवाम की नजर में बुंदेलखंड के सबसे हुनर मंद किसान भी है , मीडिया की नजर में भी । ऐसे अन्य और भी किसान है जो लिया गया कर्जा चुकाने की हैसियत रखते है । पर सच यह है कि छोटे सीमांत किसान की आड़ लेकर फसलो का मुआवजा लेना ,  कर्जमाफी लेना , आन्दोलन में शामिल होना और बैंक को लिया गया कर्ज नही देना भी एक और कडवा सच है ।

अब बेमोसम हुई इस बारिस में ही कई ऐसे बड़े किसान होंगे जो सरकार से मुआवजा लेने की फ़िराक में पाला , ओला से हलाकान होने के लिए छोटे किसान की कतार में खड़े मिलेंगे । बुंदेलखंड में वास्तव में बदहाल कर्जदार किसान के साथ ये मानसिकता भी बहुत घातक है । असल में जो बदहाल , गरीब किसान है , दलित है वो इसी सामंतशाही के कारण आज भी भूखा ही है । ग्राम्य की सुविधा और सरकार के किसानो के लिए बनाई गई योजना से महरूम है क्योकि उन पर ऐसे बड़े किसान कुंडली मारकर बैठे है । ये भी एक क्रीमी लेयेर या सफ़ेद अपराध ही है । किसानो की खुशहाली और बुंदेलखंड की किसान समरसता के लिए परंपरागत बीजो का पुनः चलाना बढे । बचाव हो और क्रषि को आजीवका के मूल पेशे से जोड़कर देखा जाये ।

By - आशीष सागर दीक्षित