(Poem) २३ कम नहीं होते !!

२३ कम नहीं होते !!

रोते क्यों हो,
२३ कम नहीं होते !

हम अगर ६९ की सिगरेट पी सकते हैं तो तुम १० रूपए की चाय पी सकते हो,
हम अगर ३५० रूपए की एक प्लेट दाल खा सकते हैं तो तुम १० रूपए का वडा खा सकते हो,
हम अगर ५००० रूपए का पट्रोल भरवा सकते हैं तो तुम साइकिल में दो रूपए में हवा भरवा सकते हो ,
रोते क्यों हो,
२३ कम नहीं होते!

२३ में तुम कम से कम ४६ sms भेज सकते हो ,
या करीब इतने ही फ़ोन कर सकते हो,
या बस में मीलों का लम्बा सफ़र कर सकते हो,
या हर दूसरे दिन किसी फिल्म का DVD खरीद सकते हो,
रोते क्यों हो,
२३ कम नहीं होते !

और अब तो इन्टरनेट का ज़माना है,
२३ रुपयों में कम से कम ढाई घंटे इन्टरनेट देख सकते हो,
Facebook पे जाओ,
LinkedIn पे जाओ,
गूगल+ पे जाओ,
दोस्ती बढ़ाओ,
चाहो तो अपनी वेबसाइट शुरू कर दो,
रोते क्यों हो,
२३ कम नहीं होते!

मुझे देखो..मेने २३ तक ही गिनती सीखी है,
फिर रट्टा मार कर में IAS बन गया
अब में मालिकों का मालिक हूँ ,
दुनिया मेरी मुट्ठी में है,
में जो कहता हूँ लोग मानते हें ,
और में तुमसे कहता हूँ -
रो मत,
२३ कम नहीं होते !

ज़रा......दूर हटो....ऐं ...कितनी बदबू आती है तुमसे...इतने करीब मत आओ.....ज़रा दूर रहो ......कितने गंदे हो तुम!!!

खैर...में क्या कह रहा था....हाँ!
रोते क्यों हो,
२३ कम नहीं होते,
तुम ग़रीब नहीं हो,
ग़रीब तो २३ से नीचे वाले हैं
उनसे तुम्हें क्या मतलब !
तुम उनकी परवाह मत करो,
उनका होना न होना बराबर है !

तुम चिंता मत करो,
रो मत,
२३ कम नहीं होते~!

By: अशोक कुमार

Comments

बहुत अच्छा अशोक कुमार ! आपने अच्छा व्यंग लिखा है. लिखते रहिये और हिट करते रहिये.

भारतेंदु प्रकाश