(Poem) देश निकाला दे देना मै माँ के दर्द सुनाने आया हूँ: Vineet Trivedi


(Poem) देश निकला दे देना मै माँ के दर्द सुनाने आया हूँ: Vineet trivedi


कलम मेरी फिर मौन नहीं कर सकता हूँ
मुझको देश निकला दे देना मै माँ के दर्द सुनाने आया हूँ,
घुट घुट कर जीती माँ का हाल बताने आया हूँ,
जब तक भारत माँ के दामन पे दाग लहू के दिखते है,
जब तक घाटी के दर्रो में चीत्कार के जत्थे है,
मेरी माँ का आँचल जब तक छलनी छलनी दिखता है,
और आँख से मेरी माँ के लहू निकलता रहता है,
तब तक मै सिंघासन को हत्यारी बतलाने आया हूँ,
मुझको देश निकला दे देना मै माँ के दर्द सुनाने आया हूँ,
घुट घुट कर जीती माँ का हाल बताने आया हूँ,,
सीमा पार नहीं करना ये उनको बतलाने आया हूँ,
कफ़न बांध के बैठा हूँ मै तुमको दिखलाने आया हूँ,
जब तक बंद फाइलों में बंद फैसले होते है,
भारत माँ के बने दुलारे कमरो में सोते रहते है,
सीमा पर जब तक अत्याचारी बढ़ता जाता है,
और देश के वीरो का खून बहाया जाता है,
तब तक मै जनता की नजरो में तुम्हे गिराने आया हूँ,
मुझको देश निकला दे देना मै माँ के दर्द सुनाने आया हूँ,
घुट घुट कर जीती माँ का हाल बताने आया हूँ,

By: काजल त्रिवेदी (विनीत)
ऐहार युवा कवि,