(कविता Poem) महुआ है बुंदेली मेवा (by श्री बाबू लाल जैन, दिगौडा - टीकमगढ)


(कविता) महुआ है बुंदेली मेवा


babulal-jain-tikamgarh

(श्री बाबू लाल जैन, दिगौडा - टीकमगढ)

महुआ है बुंदेली मेवा
दीन हीन जन का प्रतिपालक, करत बहुत ही सेवा
महुआ है बुंदेली मेवा॥

कामधेनु सम कल्पवृक्ष यह, महुआ जिसका नाम।
पत्ते फूल और फल इसके, सब अंग आवें काम ॥
नहीं कोई इसके सम देवा, महुआ है बुंदेली मेवा ||

मुरका लटा मिठाई इसकी, डुबरी फूली दाखें,
हरछट के दिन चना चिरोंजी, संग मिल इसको खावें।
पूजन में संग इसको लेवा, महुआ है बुंदेली मेवा ॥

फोड़ गुली को बनते धपरा, तेल निकलता उनसे ।
खाते और बनाते साबुन, जम जाता घृत जैसे॥
बेचकर वस्त्र स्वर्ण लेवा, महुआ है बुंदेली मेवा ॥

पत्ते भी बन जाते इसके, बकरी का भोजन।
काट टहनियां जला रहे हैं, कुछ इसको दुर्जन ॥
प्रभू जी इनको समझ देवा, महुआ है बुंदेली मेवा॥

गुली फलक तो रसगुल्ले सम, पशु जन के मन भावें,
लपकी गाय गुलेंदर खाने, महुये तर पुनि पुनि जावे।
बच्चे बीनत करत कलेवा, महुआ है बुंदेली मेवा॥

वृक्ष कभी यदि उखड़ जाये, तो लकड़ी आती काम।
फाटक खिड़की चौखट आदिक, बनकर शोभित धाम॥
करत यह भारी जन सेवा, महुआ है बुंदेली मेवा॥

अटा अटारी की पटनोरें, करी मियारी बनतीं।
पलंग पीठिका बेंड़ा खूंटी, मजबूती बहु धरती॥
लकड़ी बहुत काम में लेवा, महुआ है बुंदेली मेवा॥

पशु पक्षी छाया में इसकी, नीढ़ बनाकर रहते।
साधू संत कोटर में बैठे, कठिन तपस्या करते॥
गाते शुक मैना व परेवा, महुआ है बुंदेली मेवा॥

मधु के हैं भण्डार किंतु जन मद्यपान में लेते ।
औषधि जीवन हेतु वैद्य दें, पर कुछ विष सम सेते॥
इसमें किसे दोष हम देवा, महुआ है बुंदेली मेवा॥

महुआ है बुंदेली मेवा...दीन हीन जन का प्रतिपालक,
करत बहुत ही सेवा, महुआ है बुंदेली मेवा॥