(Report) बुन्देलखण्ड की प्रकृति का दोहन करने वाले भस्मासुरों को रोकना होगा

बुन्देलखण्ड की प्रकृति का दोहन करने वाले भस्मासुरों को रोकना होगा

विन्ध्य बुन्देलखण्ड के चार जनपदों में क्रमशः बांदा, चित्रकूट, महोबा, हमीरपुर में बीते ढाई दशकों से अनवरत जारी प्राकृतिक सम्पदाओं का दोहन लगातार अमानवीय मनुष्य के कृत द्वारा किया जा रहा है। इन्ही के दुष्परिणामों को झेलता हुआ आम नागरिक जिसमें कि किसान, मजदूर, श्रमजीवी नागरिक पूरी तरह से जबाह होनी की अन्तिम कगार पर हैं। इसी की एक बानगी है कि पिछले छः वर्षों से बुन्देलखण्ड के चित्रकूट धाम मण्डल बांदा के अन्तर्गत आने वाले चारों जनपदों में आकाल, आत्महत्या, कर्ज, सूखा एवं पलायन सुरसा की तरह मुंह बाये बढ़ता ही चला जा रहा है। 2005-07 से किसानों ने जहां सैकडों आत्महत्याओं के जरिये कर्ज से आजिज आकर बुन्देलखण्ड के भूमाफियाओं एवं प्रकृति का दोहन करने वाले व्यक्तिगत स्वार्थ निहित व्यक्तिओं को यह समझाने का भरशक प्रयत्न किये की अब तो बुन्देलखण्ड के भस्मासुरों को हमारी वर्षों से प्यासी धरती को और उसके आसपास पर्यावरण के प्रहरी जल, जंगल, वन्य जीव एवं पहाड़ को न तो विस्थापित किया जाये और न ही उन्हे खत्म किया जाये। क्योंकि इनके दुष्परिणाम ही यहां घटते हुए जलस्तर, बढ़ते हुए भू-प्रदूषण, कम होती वर्षा, विस्थापित होते हुए किसान-मजदूर और साल दर साल बदहाल खेती के महत्वपूर्ण कारक हैं। लेकिन अतिश्योक्ति तब होती है कि जब संवेदन शून्य इन भूमाफियाओं के जहन में उनके अस्कों की एक बूंद भी पत्थर बन चुकी हृदय को संवेदित न कर सकी।

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बताते चले कि पिछले एक माह से और विगत एक वर्ष से जनसूचना अधिकार के तहत उपलब्ध आंकड़ों के आधार पर पर्यावरण बचाने की मुहिम में प्रयासरत प्रवास सोसाइटी ने 01 अक्टूबर 2010 से ही लोगों को लामबन्द करते हुए प्रकृति के अवैध खनन रोके जाने की गुहार की थी। इन्ही सब कारणांे को केन्द्रित कर संगठन ने बीते 03.12.2010 को मान्नीय उच्च न्यायालय इलाहाबाद में एक जनहित याचिका (पी0आई0एल0) रिट दाखिल की है जिसकी सुनवाई कल 08.12.2010 को हुयी थी और आगामी 22 दिसम्बर 2010 को अगली सुनवाई है। इस जनहित याचिका में जिन लोगों को चिन्हित किया गया है उनमें प्रमुख सचिव माइन्स एवं मिनिरल्स उत्तर प्रदेश, प्रमुख सचिव वन एवं सामाजिक वानकी उ0प्र0, डिवीजनल फारेस्ट आफीसर महोबा एवं बांदा, सेन्ट्रल पोंल्यूशन कन्ट्रोल बोर्ड लखनऊ, स्टेट पाॅल्यूशन कन्ट्रोल बोर्ड, निदेशक लखनऊ, डायरेक्टर जनरल माइन्स एवं सेफ्टी रीजल गाजियाबाद को नामित किया गया है। गौरतलब है कि हाल ही मंे श्रम परिवर्तन अधिकारी जिला बांदा ने जो सूचनायें दी हैं उनके मुताबिक नौ से चैदह वर्ष के चिन्हित बाल श्रमिकों में से 1646 बालक तथा 425 बालिकायें बांदा में खतरनाक व्यवसाय में काम करते पाये गये हैं। वर्ष 2009 के पायलट सर्वेक्षण के मुताबिक 179 बालक बालश्रम में चिन्हित किये गये हैं वहीं अधिनियम 1986 (बालश्रम प्रतिषेध एवं विनियमन) में चैदह वर्ष से कम आयु के बच्चों के नियोजन 13 व्यवसाय, 57 प्रक्रियाओं को खतरनाक व्यवसाय की श्रेणी में रखा गया है। इसका उल्लंघन करने वाले को एक हजार रूपये से बीस हजार रूपये तक का जुर्माना एवं एक वर्ष की सजा का प्रावधान है। साथ ही मान्नीय उच्च न्यायालय के निर्णय के अनुसार बीस हजार रूपये अतिरिक्त बालश्रमिक की दर से वसूल करने का भी प्रावधान है।

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जिले में कार्यरत बालश्रम उन्मूलन परियोजना के अन्तर्गत केन्द्र सरकार द्वारा जनपद को 1,50,70,101.00 रूपये प्राप्त हुये हैं जिसमें की 85,08,928.00 रूपये खर्च हो चुके हैं एवं लगभग 74,00,000.00 रूपये ब्याज सहित अवशेष हैं। इसमें राज्य सरकार की कोई धनराशि सम्मिलित नहीं है। एक प्रमुख तथ्य यह है कि जनपद में कुल चालिस बालश्रम विद्यालय कार्यरत हैं। जिनमें पढ़ने वाले लगभग 800 बालश्रमिकों को कक्षा-5 एवं 8वीं की परीक्षा इसलिये नहीं दिलायी गयी क्योंकि वहां तैनात अनुदेशक एवं अध्यापकों को बालश्रम समिति द्वारा मानदेय ही नहीं दिया गया और 800 बालश्रमिक एक मरतबा फिर भिन्न-2 व्यवसायों को रोजी-रोटी का जरिया बनाकर बालश्रम में मशगूल हैं। हमीरपुर में 2180, महोबा में 1200 और बचपन बचाओ संघर्ष समिति के अनुसार बांदा में कुल 4000 बालश्रमिक हैं। जिन्हे बुन्देलखण्ड के खतरनाक व्यवसायों में जिसमें की अवैध खनन-खदान, बालू खदान, होटल, भिक्षावृत्ति, मजदूरी के साथ-साथ यौन उत्पीड़न में भी प्रताड़ित किया जाता है। इन्ही सब आपाधापी के बीच प्रवास ने आगामी सोमवार से ‘‘ बुन्देलखण्ड में खत्म हो रहे पहाड़, जंगल-जल एवं वन्य जीवों के पुनर्वास हेतु साजा पहल और हस्ताक्षर अभियान ’’ चलाने का संकल्प लिया है इसमें जनसहयोग, जन समर्थन की अगुवाई कर जमीन से जुड़े आम आदमी को भी बुन्देलखण्ड बचाने के लिये आत्म मंथन करने को प्रेरित किया जायेगा।


आशीष सागर, प्रवास सोसाइटी