(Article) आस्था या नदियों को मिटाने की साजिश

आस्था या नदियों को मिटाने की साजिश

‘मेरे बीते हुये कल का तमाशा न बना , मेरें आने वाले हालात को बेहतर कर दो।
मै बहती रहूं अविरल इतना सा निवेदन है, नदी से मुझको सागर कर दो।।’

बुंदेलखंड - सर्वाधिक सूखे और जल संकट से टूटते बंुदेलखंड समेत पूरे भारत वर्ष में शरद ऋतु के आगमन और पितृ पक्ष के मध्यस्थ को पुख्ता करने की धार्मिक परंपरा मां दुर्गे के पर्व के रूप में मनाना संम्प्रदायिक और हिंदू संस्कारों को मजबूत करने का आधार है।

हर वर्ष की भंाति बंुदेलखंड के सातो जिलों में पानी की टूटती हुयी जलधारा से मिट रही नदियां एक बार फिर नवरात्रि के बाद मूर्ति विसर्जन के कारण अपनी अस्मिता को कटघरे में खडा होते देखने की कशमकश में थी। लेकिन जनपद बांदा ने पिछले तीन दशक से चली आ रही नवरात्रि में नदियों में प्रवाहित की जाने वाली मूर्ति विसर्जन परंपरा से इतर कुछ अलग ही करने का मन बना लिया था। चित्रकूट, बंादा, हमीरपुर, महोबा, झांसी, ललितपुर, जालौन के नवरात्रि पर्व में लगने वाली मूर्तियों की गणना यदि आंकडों मे की जाये तो यह संख्या करीब 2000 के आसपास ठहरेगी। अकेले चित्रकूट में ही मंदाकिनी को प्रदूषित करने के लिये नौ थानो के अंतर्गत नदी के 17 घाटों में 466 मूर्तिया इस वर्ष विसर्जित करने की तैयारियां धार्मिक उन्माद में कर रखी थी। बंादा में ही 380 मूर्ति एक मात्र जीवनदायिनी नदी केन के तट पर प्रवाहित की जानी थी।

विगत दो वर्षो से मूर्ति विसर्जन के बाद स्वयं सेवी संगठन प्रवास सोसायटी अपने कुछ स्वयं सेवियों के साथ नदी तट पर जाकर स्वच्छता अभियान का कार्य करती रही है। मगर मूर्ति विसर्जन की संख्या के सामने प्रवास द्वारा किया गया यह काम अदना ही साबित होता रहा है। इसी उधड़बुन में जूझते हुये कुछ अलग करने का मन बना चुके स्वयं सेवी कार्यकर्ता रूढिवादी परंपरा को ही बदलने की ठान चुके थे। इसी कड़ी में जनपद बांदा की नगर पालिका अध्यक्षता विनोद जैन के समक्ष प्रवास ने अपनी मांगो को लेकर ज्ञापन दिया और नगर में स्थापित की गयी दुर्गा प्रतिमाओं के नदी तट पर ही भूमि विसर्जन की मांग रखी। विनोद जैन ने प्रवास के ज्ञापन पर मौखिक रूप से मौखिक रूप से सहमति जताते हुये जिला प्रशासन के समक्ष भूमि विसर्जन के लिये पक्ष रखने की बात कहकर मुद्दे को जिलाधिकारी के पाले मंे डाल दिया।

जिलाधिकारी के समक्ष आठ अक्टूबर 2012 को स्वयंसेवियों ने पुनः भूमि विसर्जन के लिये प्रशासनिक स्तर पर व्यवस्था कराये जाने की मांग को लेकर आठ सूत्रीय ज्ञापन देकर व्यवस्था कराये जाने की अपील की। तीन दशक से चली आ रही परंपरा को मोड़ने की पहल भूमि विसर्जन जिले के स्वयंभू केन्द्रीय कमेटी दुर्गा महोत्सव और कुछ जातीय नेताओं को हजम नही हुयी। इसी के चलते दिशाहीन युवा, कथित बेलन गैंग की मुखिया पुष्पा गोस्वामी को आगे कर प्रवास की इस मुहिम को विराम लगाने की पूरी ताकत झोक दी गयी। इसके पीछे तर्क सिर्फ इतना सा था कि केन्द्रीय कमेटी का फैसला ही सर्वमान्य है। और जिले में एक भी मूर्ति का भूमि विसर्जन नही किया जायेगा। आनन फानन में केन्द्रीय कमेटी ने बैठक बुला कर खाप पंचायतो की तर्ज पर जिले के सभी दुर्गा पंडालो के लिये जल विसर्जन का फतबा जारी कर दिया। प्रवास की इस मुहिम में सारथी बनकर चल रहे कानपुर से प्रकाशित एक दैनिक समाचार पत्र को भी निशाना बनाया गया।

भूमि विसर्जन के विरोध करने वालो की जमात में जनपद से प्रकाशित एक स्थानीय समाचार पत्र मै देख रहा हूं के ध्रतराष्ट्र वादी आंखो ने इस अभियान को तोड़ने के लिये शब्दो की रामलीला में भूमि विसर्जन को भू-दफन लिखकर अपने समाचार पत्र के माध्यम से धार्मिक जेहाद का एक नया पायदान खड़ा करने की नाकाम कोशिश की। भूमि विसर्जन की पहल करने वाले प्रवास संगठन को बकवास संस्था और इंडिया एलाइव की संयुक्त पहल को बख्शीस सागर का कथित कारनामा कहकर बेहिचक प्रकाशित किया गया। आरोप तो यहां तक लगाये गये कि इस मुहिम के पीछे पर्यावरण मंत्रालय से एक करोड चालीस लाख रू0 पानी के नाम पर हथियाये जाने का षडयंत्र छिपा है। पत्रकारिता का यह निम्नतम चरित्र वर्तमान पत्रकारिता को ही परिभाषित करने के लिये काफी है कि किस तरह मंडी में बिकता है मीडिया।

जनसूचना अधिकार 2005 से मिली जानकारी के अनुसार जनसूचना अधिकारी प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड अमित चंन्द्रा का कहना है कि ‘जल अधिनियम 1974 एवं वायु अधिनियम 1981 की धारा 25 /26 व 21 के अन्तर्गत उत्प्रवाह निस्तारण - उत्सर्जन हेतु राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड से सहमति प्राप्त किया जाना अनिवार्य है। इन अधिनियमो की परिधि में प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अधिकार और कर्तव्य निहित है। जिसके लिये स्थानीय स्तर पर नगर निगम - नगर पालिका उत्तरदायी है। अनुपालन न होने की दशा में अभियोजनात्मक /निषेधात्मक कार्यवाही का प्राविधान है।’

लेकिन हिंदुस्तान में कानून और अधिनियम तो महज सरकारी दफ्तरो की फाइलो में शासनादेश बनकर लगाये जाने की परंपरा देश आजाद होने के बाद से ही शुरू हो गयी थी जो आज भी बदस्तूर जारी है। मां दुर्गा की नौ दिन की आस्था मूर्ति विसर्जन के दिन धार्मिक उन्माद के नाम पर तार तार करने का ठेका जनपद बांदा शहर पूरे भारत वर्ष में धर्म के कुछ ठेकेदारो ने ले रखा है। उन्हे इस बात से भी गुरेज नही की नदियां भी मां की रूप होती है। और आस्था जिंदगी की सड़क पर तय नही की जा सकती है।

जल ही जीवन है अगर हम इस शब्द को मानते है तो यह कहना नितांत तार्किक है कि समसामयिक समय में बुदेलखंड जैसे क्षेत्र के लिये नदियों की क्या अहमियत है, इस बात का अंदाजा गर्मी के उन दिनों में लगाया जा सकता है जब पानी लूटने की घटनायें और पानी के नाम पर कत्लेआम चित्रकूट के पाठा क्षेत्र, जनपद महोबा में रोजमर्रा की घटनाये बनकर रह जाते है। बंुदेलखंड के लिये पानी की कीमत पर एक कहावत भी है कि गगरी न फूटे, खसम मर जाये। पर्यावरणविद और समाजसेवी डा0 भारतेन्दू प्रसाद की माने तो चार सौ मूर्तियो के जल विसर्जन से लगभग 200 टन अपशिष्ट कचरा नदियों मे ंचला जाता है। प्लास्टर आफ पेरिस से बनायी जाने वाली मूर्तियों में खतरनाक केमिकल युक्त रंग का इस्तेमाल किये जाने के कारण जल विसर्जन के बाद इसके प्रदूषण से हजारो मछलियां मौत के शिकंजे मे होती है। श्रंगार का सामान, कांच की चूड़ियां, लकडी का ढांचा नदी की धारा को अवरोध करने का काम करता है।

भूमि विसर्जन भले ही हिंदू आस्था को शब्दो के जाल में फिट न करता हो परंतु यह हमारा आने वाला भविष्य है जिसे बुंदेलखंड के बांदा ने अमली जामा पहनाने का काम किया है।
मूर्ति विसर्जन के दिन तिंदवारी, जसपुरा, कमासिन, तिंदवारा, अतर्रा व ओरन की 100 मूर्तिया केन में प्रवाहित नही की गयी। इन सभी का भूमि विसर्जन नदी किनारे रेत में गडढा खोदकर स्वयं सेवियों ने खुद के प्रयास से किया। भूमि विसर्जन को रोकने के लिये दुर्गा कमेटियों के स्वयंभू अध्यक्ष रामसेवक गोस्वामी, महामंत्री प्रशान्त समुद्रे, राजेश राज, रवीन्द्र श्रीवास्तव, रत्नेश गुप्ता, पुष्पा गोस्वामी (बेलन गैंग फालोवर संपतपाल) और जातीय नेताओं की एक लम्बी चैड़ी फेहरिस्त जो नवरात्रि उत्सव के नाम पर वोटो की राजनीति अधिक और आस्था कम करती है की पूरी मंडली शामिल थी। जिले से सबसे पहले मां अम्बे नव युवक समाज के अध्यक्ष सुधीर प्रजापति सदस्य नगर पालिका बांदा, सूर्यप्रकाश तिवारी, डा0 लक्ष्मी त्रिपाठी, शशी सिंह, ममता पांडेय तैयार हुयी। इन्होने जिले की केन्द्रीय कमेटी की चुनौती को स्वीकार करते हुये जल को प्रदूषण से बचाने की अनूठी पहल को कारगर किया। मगर सफर इतना आसान नही था कि खबर के शब्दो मे लिखा जा सके। 25 अक्टूबर 2012 मूर्ति विसर्जन के दिन मां अम्बे नवयुवक समाज की मूर्ति को भूमि विसर्जन से रोकने के लिये समाजवादी पार्टी के बबेरू विधानसभा विधायक विशम्बर यादव की प्रतिनिधि कल्पना सोनी , पुष्पा गोस्वामी, प्रशान्त समुद्रे, राजेश राज, रत्नेश गुप्ता ने अपने कथित खुफिया तंत्र को लगा रखा था। जल प्रहरी बने मां अम्बे नवयुवक समाज को सबसे पहले कनवारा घाट में रोका गया लेकिन सफल न हो पाने के बाद केन्द्रीय कमेटी के कुछ और सदस्यों को बुलाकर भूमि विसर्जन स्थल अछरैोड घाट में पूरा तमाशा एक महिला को आगे कर किया गया। भूमि विसर्जन के लिये खोदे गये गडढे में बेलन गैंग की मुखिया पुष्पा गोस्वामी और प्रशांत समुद्रे जूता पहन कर कंूद पडे जिन्हे डांट डपट कर सी0ओ0 सिटी आशुतोष शुक्ला ने बाहर निकाला।

बडी बात यह है कि भूमि विसर्जन की मुहिम में कदम से कदम मिलाकर बांदा का जिला प्रशासन सकारात्मक भूमिका में था। मौके की नजाकत को समझते हुये उपजिलाधिकारी गिरीश कुमार शर्मा, शहर कोतवाल उमाशंकर यादव, तहसीलदार सदर ने भारी पुलिस बल और पी0ए0सी0 कनवारा के आसपास गांव में लगा रखी थी। प्रशासन और फोर्स की मदद से मां अम्बे नव युवक समाज की मूर्ति का भूमि विसर्जन कराया गया। विवाद को बढता देखकर उपजिलाधिकारी बांदा ने तल्ख लहजे में उपद्रव कारियों को कहा कि आप धर्म के ठेकेदार नही है, यह अपनी अपनी आस्था है कि कौन जल विसर्जन कर रहा है और कौन भूमि विसर्जन। भूमि विसर्जन एक सकारात्मक सोच है जिस पर सबको विचार करना चाहिये।

भूमि विसर्जन होते ही केन्द्रीय कमेटी ने नैतिकता की सरहद को पार कर पूरे नगर में यह अफवाह दुष्प्रचारित करने की कोशिश कि प्रवास और मां अम्बे नवयुवक समाज ने दुर्गा की मूर्ति को चप्पलो से मारा और गडढे में दफन कर दिया। शहर की सारी मूर्तिया रोक कर बांदा की संप्रदायिक एकता को बदरंग करने का खाका भूमि विसर्जन की बुनियाद पर तैयार किया जा चुका था। पुलिस प्रशासन को इस बात की भनक लगते ही इंडिया एलाइव के बुंदेलखंड व्यूरो प्रमुख आशीष सागर को सांकेतिक रूप से हिरासत में ले लिया गया। 6 घंटे पुलिस हिरासत में रहने के बाद रात 12 बजे उन्हे ससम्मान रिहा किया गया। बुदेलखंड की यह पहल आने वाली एक नयी परंपरा की तस्दीक है जो नदियो को बचाने की अनूठी मिसाल के तौर पर जानी जायेगी। निश्चित रूप से इस मुहिम का हिस्सा बने प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष एक से प्रत्येक आदमी साहस का स्तम्भ बनकर सामने आया है जिसे दूसरे जनपदो में भी अपनाये जाने की आवश्यकता है। अगर नदियों को वास्तव में जिंदगी के लिये बचाना है।

By: आशीष सागर

Comments

Please do not leave the issue of MURTI VISARJAN just because NAVADURGA celebrations are over . This is increasing like infectious disease. The whole act of worshipping ( ?) the earthen models is not supported by Hindu tradition . There is no ASTHA, it is only show of strength to each other and is dividing Hindus too on the basis of caste and richness & poverty.
With best wishes

Bharatendu Prakash
Bundelkhand Resources Study Centre