(Article) शंखों का संसार  | रवीन्द्र व्यास 

शंखों का संसार  | रवीन्द्र व्यास 

शंख हर युग में लोगों को आकर्षित करते रहे है | देव स्थान से लेकर युद्ध भूमि तक , सतयुग से लेकर आज तक शंखों का अपना एक अलग महत्त्व है |पूजा में  इसकी ध्वनि जंहाँ श्रधा वा आस्था का भाव जगती है वहीँ युद्ध भूमि में जोश पैदा करती है |

मध्य प्रदेश  के छतरपुर जिले में ईशानगर नामक एक क़स्बा है | यहाँ के पंडित हरसेवक मिश्रा का घर शंखों का संग्रहालय बन गया  है | बीते चालीश सालों में उन्होने तमाम तरह के हजारों  शंख जुटाए है | उनका यह जूनून अब भी जारी है| हर साल वे तीर्थ यात्रा पर जाते है और ऐसी दुर्लभ चीजें जुटाते है | इसके पीछे वे बताते है कि उनकी पत्नी ने प्रेरणा दी थी कि  एसा कुछ करो जो हमेशा याद किया जाये| पंडित हरसेवक मिश्रा आज ७० साल से भी ज्यादा उम्र के हो गए है | किन्तु उनका जोश और जज्ब्बा अनेक लोगों को प्रेरणा देता है | आज उनके इस अनोखे संग्रहालय में २५ हजार से भी ज्यादा शंखों का खजाना है| इन शंखों के बारे में मिश्रा जी बताते है कि हिन्दुओं के ३३ करोड़ देवता है सबके अपने अपने शंख है| देवासुर संग्राम में अनेक तरह के शंख निकले ,इनमे कई सिर्फ पूजन के लिए होते है |

हिन्दू धर्म में शंख का महत्त्व अनादि काल से चला आ रहा है |इसे पूज्य और पवित्र माना गया है ,पूजन में आवश्यक माना जाता है ||महाभारत युद्ध के समय भगवान श्री कृष्ण ने  पांचजन्य शंख को बजा कर युद्ध का जयघोष किया था |कहते है कि यह शंख जिसके पास होता है उसकी यश गाथा कभी कम नहीं होती | महाभारत के इसी युद्ध में अर्जुन ने देवदत्त नाम का  शंख बजाया था |वहीँ  yudhisthir  के पास अनंत विजय नाम का शंख था ,जिसे उन्होने रण भूमि में बजाया था |इस शंख कि ध्वनि कि ये विशेषता मानी जाती है कि इससे शत्रु सेना घबडाती है और खुद कि सेना का उत्साह बढता है |भीष्म  ने पोडरिक नामक शंख बजाया था |इस शंख कि आवाज से कोरवों कि सेना में हलचल मच गई थी |  रण भूमि में शंखों का पहली बार उपयोग देवासुर संग्राम में हुआ था \ देव  दानवों के इस युद्ध में सभी देव -दानव अपने अपने शंखों के साथ युद्ध भूमि में आये थे | शंखों कि ध्वनि के साथ युद्ध शुरू होता था और उसी के साथ ख़त्म होता था |तभी से यह माना जाता है कि हर देवी देवता का अपना एक अलग शंख होता है |स्वयं भगवान् विष्णु के दाहिने हाथ में दक्षिणावर्ती शंख धारण करते है |पुराणों के अनुसार समुद्र मंथन के समय यह शंख निकला था| जिसे स्वयं विष्णु जी ने धारण किया था |यह एसा शंख है जिसे बजाया नहीं जाता ,इसे सर्वाधिक शुभ माना जाता है |

महा लक्ष्मी शंख का आकार श्री यंत्र क़ी भांति होता है |इसे प्राक्रतिक श्री यंत्र भी माना जाता है |जिस घर में इसकी पूजा विधि विधान से होती है वहाँ स्वयं लक्ष्मी जी का वाश होता है| इसकी आवाज सुरीली होती है | विद्या क़ी देवी सरस्वती भी शंख धारण करती है |वे स्वयं वीणा शंख कि पूजा करती है |माना जाता है कि इसकी पूजा वा इसके जल को  पीने से मंद बुद्धी भी ज्ञानी हो जाता है | विघ्न हर्ता -मंगल कर्ता गंनेश जी का शंख स्वयं गणेश जी का रूप माना जाता है |इसकी पूजा से सकल मनोरथ सिद्ध होते है | भगवान् शंकर रूद्र शंख को बजाते थे | जबकि उन्होने त्रिपुराशुर के संहार के समय त्रिपुर शंख बजाया था | -शंख का सिर्फ धार्मिक वा देव लोक तक ही महत्त्व नहीं है |इसका वास्तु के रूप में महत्त्व भी माना जाता है |कहते है कि जिस घर में नियमित शंख ध्वनि होती है  वहां कई तरह के रोगों से मुक्ति मिलती है इनके पूजन से श्री समृधि आती है |१९२८  में बर्लिन यूनिवर्सिटी ने शंख ध्वनि का अनुसन्धान करके यह सिद्ध किया कि इसकी ध्वनि कीटाणुओं  को नष्ट करने कि उत्तम औषधि है | शिकागो के डॉ.डी.ब्राउन ने हजारों बहरे रोगियों को शंख ध्वनि से चंगा किया है |

पंडित जी के संग्रहालय में सिर्फ शंखों का ही संग्रह नहीं है बल्की राम सेतु समय के वे पत्थर भी है जो पानी में  तेरते है|   समुद्री प्राणी का खोल शंख कितना चमत्कारी हो सकता है| जरुरत है इसके और अनुसन्धान वा वैज्ञानिक विश्लेषण की|

रवीन्द्र व्यास