(Article) बुंदेलखंड मे गाय एवं भैस के नवजात बच्चों की स्थिति एवं उनका उचित पालन पोषण

 बुंदेलखंड मे गाय एवं भैस के नवजात बच्चों की स्थिति एवं उनका उचित पालन पोषण

अक्सर यह देखा गया है कि पशुपालक जन्म के बाद गाय, भैसों के बच्चों पर विशेष ध्यान नहीं देते हैं। इसी कारण 60 प्रतिशत बच्चे अल्प आयु में ही मर जाते हैं जबकि कृषक या दुग्ध उत्पादक दूध जैसे महत्वपूर्ण कीमती पदार्थ को देने का प्रयत्न भी करते है। लेकिन पालन पोषण का सही ढंग न होने के कारण, बच्चे मर भी जाते हैं, और दूध का भी नुकसान उठाना पड़ता है। शेष 40 प्रतिशत बच्चे भी अस्वस्थ रहते हुए बड़े हो जाते हैं ये बच्चे बाहर से देखने पर तो जवान लगते हैं, लेकिन प्रजनन अंगों का विकास ठीक से न होने के कारण गर्भ धारण करने में एक दो वर्ष और लेते है। अच्छे बढे हुए ताकतवर पशु वो ही बन पाते हैं जिन पर जन्म से ही ध्यान दिया जाता है। अतः पैदाइश के 3 मास तक बच्चों के पालन पोषण पर विशेष ध्यान दिया जाना चाहिए। ताकि वे हष्टपुष्ट बनें और शीघ्र जवान होकर प्रजनन योग्य बनें जिससे दूध का उत्पादन भी समय पर हो, और कृषि कार्यो के लिए भी बैल तैयार हो जायें।

बच्चों को स्वस्थ्य रखने के लिए निम्नलिखित बातों पर विशेष ध्यान देना चाहिए जैसे किः-

1. पैदा होते ही बच्चे की सफाईः
गाय, भैसों के बच्चों के जन्म होने पर नाक, कान, मुंह तथा आखों पर गर्भ की जो झिल्ली होती है, उसे शीघ्रतिशीघ्र उतारा जाये, ताकि बच्चा अच्छी प्रकार सांस ले सके और देख सके। इस प्रकार सांस की क्रिया और दिल की धड़कन तेज होती है, और इसको बच्चे बाहरी वातावरण में चेतना की अवस्था में आ जाता है।

2. सूंड को नाभि से 2 इंच के फासलें पर काटनाः
बच्चों को अच्छी प्रकार से साफ करने के बाद उसकी नाभि से सूंड को 2 इंच के फासले पर साफ धागे से बांधने के पश्चात काटना चाहिए, और पूरे सूंड पर टिंचर आयोडीन या बीटाडीन लगाना चाहिए। प्रतिदिन सूंड पर टिंचर आयोडिन लगाते रहें, जिससे सूंड एक सप्ताह में अपने आप सूख कर गिर जाएगा। सूंड काटने हेतु नयी ब्लेड का ही प्रयोग करना चाहिए पुरानी जंग लगी धारदार चीजों से न काटें।

3. खीस पिलानाः
जन्म के एक दो घंटे के पश्चात बच्चे को जब भूख लगेगी, तब वह स्वय आरम्भ करेगा और अपनी मां के थनों की खोज में इधर-उधर चलकर मां की लवेटी या अयन के पास आवेगा। ठीक उसी समय बच्चे को पेटभर खीस पिलाने में सहायता करनी चाहिए क्योंकि खीस में प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, लवण, विटामिन तथा एन्टीबोडिज की भरपूर मात्रा होती है। जिससे कि बच्चों में बीमारियो से लड़ने और गर्म सर्द मौसम को सहन करने की क्षमता बढ़ती है।

4. पेट तथा आन्तडि़यां के कीड़ों से बचावः
गर्भावस्था में माता से बच्चे के अंदर आन्तडि़यों में आन्तरिक परजीवी पहुंच जाते हैं। अतः बच्चे को जन्म के पश्चात तीसरे, सातवें तथा 15वें दिन इन कीड़ों को मारने के लिए कृमिनाशक दवा दें। इसके पश्चात प्रत्येक 3 माह पश्चात कृमिनाशक दवाई पिलाते रहना चाहिए।

5. दस्तों की रोकथामः
बच्चे पैदा होने के दूसरे दिन ही जमीन, दीवार को चाटना आरम्भ कर देते हैं। जिसके कारण विषैले कीटाणु पेट और आन्तडि़यों में पहुंचकर रोग उत्पन्न कर देते हैं। पेट में कृमि के हो जाने से भी दस्त लगते हैं। दस्त को रोकने एवं इस रोग की रोकथाम हेतु पशु चिकित्सक की सलाह लेना चाहिए।

6. दूध पिलाने की मात्राः
बच्चे के पैदा होने के समय साधारण बच्चे का वजन 25-30 किलोग्राम तक होता है। अतः एक मास तक बच्चे को उसके वजन का 1/10 भाग दूध 24 घंटे में पिलायें दूसरे मास में शरीर के वजन का 1/15 भाग व तीसरे मास से वजन का 1/20 भाग तक दूध 24 घंटे में पिलायें।

7. मिनरल मिक्सचर तथा नमक का योगदानः
10-15 दिन के पश्चात् छोटे नरम हरे चारे जैसे- बरसीम, लोबिया, ज्वार, मक्का, आदि बड़े चाव से खाना आरम्भ कर देते हैं। क्योंकि ये चारे पौष्टिक होने के साथ-साथ स्वादिष्ट भी होते हैं। इस चारे के साथ-साथ ही 5-10 ग्राम तक नमक या मिनरल मिक्चर बच्चे के मुंह में सुबह सायं डालना चाहिए। ताकि हरे चारे आसानी से हजम हो जाये और शरीर में  लवणों की मांग भी पूर्ण हो जाये।

8. राशन का देनाः
खली, मक्का, जौ, चैकर, चना तथा अनाजों के छिलकों को पिसवाकर छोटे बच्चों के लिए बहुत बढि़या मिला जुला राशन बनाया जा सकता हैं राशन खिलाने से दूध की मात्रा भी घटाई जा सकती है, जिससे दूध जन साधारण के पीने के लिए प्रयोग में लाया जा सके।

9. सफाई तथा देखभालः
बच्चों को स्वस्थ्य एवं चुस्त रखने के लिए उसके रहने के जमीन की सफाई प्रतिदिन करनी चाहिए। ताकि जूं, चीपड़, किल्लियां आदि का हमला बच्चे पर न हो और बच्चा स्वस्थ रहे। यदि बच्चे के शरीर पर बाल काफी बड़े हों और सफाई ठीक ढंग से न हो सके तो मशीन द्वारा बाल काट देने चाहिए। गर्मी व सर्दी से बचाने के लिए भी पूरी व्यवस्था करनी चाहिए सर्दी के मौसम में बैठने के स्थान पर बिछावन का प्रयोग करना चाहिए। 3 मास के पश्चात गलघोंटू, एकटंगिया, खुरपका, मुंहपका रोगों से बचाने के लिए टीके भी लगवाने चाहिए।

साधना पाण्डेय
वरिष्ठ वैज्ञानिक
भारतीय चरागाह एवं चारा अनुसंधान संस्थान,झांसी- 284003