Lala Hardaul - लाला हरदौल

Lala Hardaul Story - लाला हरदौल 

lala hardaul bundelkhand

Story of Lala Hardaul

Hardaul a son of the famous Bir Singh Bundela of Orchha, was born at Datiya. His brother, Jhajhar Singh (Jujhar singh) suspected him of undue intimacy with his wife, and at the feast poisoned him with all his followers.

After this tragedy, daughter of Kunjavati, accordingly send an invitation to Jhajhar Singh, requesting gim to attend the wedding. He refused, and mockingly replied that she had better invite her favourite brother, Hardaul.

There upon she went in despair to his tomb and laneted aloud. Hardaul from below answered her cries, and said that he would come to the wedding and make all arrangements. The ghost kept his promise,and arranged the muptials as befitted the honour of his house.Subsequently, he visited, at night, the bedside of Akbar, and besought the emperor to command Chabutras (platforms) to be erected and honour paid hin every village throughout the empire, promising that, if he were duly honoured,a wedding should never be marred by strom or rain, and thar no one who first presented a share of his meal to Hardaul should ever want for food.

Akbar complied with these requests, and since that time Hardaul’s ghost has been worshipped in every village. He is chiefly honourded at wedding and in Baisakh (April-May) ,during which month women, especially of the lower castes, visit his Chabutras and eat there. His Chabutras is always built outside ythe village. On the day but one before the arrival of a wedding procession, the women of the family worship the gods and Hardaul and invite them to the wedding.If any sign of a strom appears,Hardaul is propitiated with songs.
 

लाला हरदौल की कहानी

बुंदेलखंड़ में पुरानी परंपराओं और लोक कथाओं का अब भी महत्व है, तमाम ऐसे रीति-रिवाज हैं जिन्हें सामाजिक और धार्मिक मान्यताओं से जोड़ कर बिना किसी झिझक निर्वहन भी किया जा रहा है। एक ऐसी परंपरा ओरछा के राजा ‘हरदौल' से जुड़ी है, जहां लोग शादी-विवाह हो या यज्ञ का भंड़ारा, उन्हें आमंत्रित करना नहीं भूलते। लोगों का मानना है कि राजा हरदौल को निमंत्रण देने से भंड़ारे में कोई कमी नहीं आती।

उत्तर प्रदेश के झांसी जनपद की सीमा से लगा मध्य प्रदेश के टीकमगढ जिले का ओरछा कस्बा बुंदेलखंड़ में धार्मिक नगरी के रूप में गिना जाता है। कभी यह कस्बा महाराजा वीर सिंह की रियासत की राजधानी हुआ करता था, अब इसे तहसील का दर्जा मिला हुआ है। यहां के महाराजा वीर सिंह के सबसे छोटे बेटे ‘हरदौल' की वीरता और ब्रह्मचर्य के किस्से हर बुंदेली की जुबां पर हैं। महाराजा वीर सिंह के आठ पुत्र थे, जिनमें सबसे बड़े का नाम जुझार सिंह व सबसे छोटे हरदौल थे। जुझार को आगरा दरबार और हरदौल को ओरछा से राज्य संचालन का जिम्मा विरासत में मिला हुआ था। लोग जुझार सिंह को कान का कच्चा व हरदौल को ब्रह्मचारी एवं धार्मिक प्रवृत्ति का मानते हैं।

ओरछा में रह रहे एक 80 साल के बुजुर्ग बिंदा बताते हैं, "सन 1688 में एक खंगार सेनापति पहाड़ सिंह, प्रतीत राय व महिला हीरादेवी के भड़कावे में आकर राजा जुझार सिंह ने अपनी पत्नी चंपावती से छोटे भाई हरदौल को ‘विष' पिला कर पतिव्रता होने की परीक्षा ली, विषपान से महज 23 साल की उम्र में हरदौल की मौत हो गई। हरदौल के शव को बस्ती से अलग बीहड़ में दफनाया गया। जुझार की बहन कुंजावती, जो दतिया के राजा रणजीत सिंह को ब्याही थी, अपनी बेटी के ब्याह में भाई जुझार से जब भात मांगने गई तो उसने यह कह कर दुत्कार दिया क्‍योंकि वह हरदौल से ज्यादा स्नेह करती थी, श्मशान में जाकर उसी से भात मांगे। बस, क्या था कुंजावती रोती-बिलखती हरदौल की समाधि (चबूतरा) पहुंची और मर्यादा की दुहाई देकर भात मांगा तो समाधि से आवज आई कि वह (हरदौल) भात लेकर आएगा।

इस बुजुर्ग के अनुसार, "भांजी की शादी में राजा हरदौल की रूह भात लेकर गई, मगर भानेज दामाद (दूल्हे) की जिद पर मृतक राजा हरदौल को सदेह प्रकट होना पड़ा। बस, इस चमत्कार से उनकी समाधि में भव्य मन्दिर का निर्माण कराया गया और लोग राजा हरदौल को ‘देव' रूप में पूजने लगे।" ओरछा के ही एक अन्य बुजुर्ग सुखदेव बताते हैं, "कुंजावती की बेटी की शादी में हुए चमत्कार के बाद आस-पास के हर गांव में ग्रामीणों ने प्रतीक के तौर पर एक-एक ‘हरदौल चबूतरा' का निर्माण कराया, जो कई गांवों में अब भी मौजूद हैं।

शादी-विवाह हो या यज्ञ-अनुश्ठानों का भंड़ारा, लोग सबसे पहले चबूतरों में जाकर राजा हरदौल को आमंत्रित करते हैं, उन्हें निमंत्रण देने से भंड़ारे में कोई कमी नहीं आती।

जालौन जिले की कोंच विधान सभा सीट से कई बार विधायक रह चुके पूर्व राज्यमंत्री दयाशंकर वर्मा बताते हैं कि यहां के बड़ी माता मन्दिर परिसर, सागर चैकी के पास और उरई रोड़ पर हरदौल मन्दिर हैं, जहां हर नवदम्पत्ति हल्दी का ‘हत्था' लगाने आते हैं। हालांकि वह कहते हैं कि ये सदियों पुरानी परंपराएं हैं, सिर्फ आस्था और विश्वास की वजह से पूजा और आमंत्रण दिया जाता है। यह भी किसी अंधविश्वास से कम नहीं है।

BY: Ramlal Jayan, Smith