मेहँदी का रंग लाल हुआ तो फूला की डोली हंसने लगी !


मेहँदी का रंग लाल हुआ तो फूला की डोली हंसने लगी !


मेहँदी का रंग लाल हुआ तो फूला की डोली हंसने लगी !
गाँव के सामाजिक सरोकार से बिटिया हुई विदा ....

11 जून को बुंदेलखंड के जिला बाँदा के नरैनी तहशील के गाँव रानीपुर में तंगहाली और गरीबी के बीच पली -बढ़ी फूला देवी के अरमानो पर इस वर्ष की आपदा ने पानी फेर दिया था ! महज चौदह बिस्वा कृषि जमीन और बटाई पर खेती करने वाली किशोरी देवी आपदा से टूट चुकी थी ! सरकारी सुविधा के नाम पर एक अदद इंद्रा आवास जिसके लिए भी 5 हजार रूपये घूस देने पड़ी उस प्रधान को जो बेटी के ब्याह में नही आया ! ....माँ की मजदूरी से जुटे रूपये से बेटी के लिए ब्याह का जोड़ा तो खरीदा जा सकता था लेकिन बाकि का खर्चा उठा पाना किसी किस्मत की पोटली को तलाश करना था जो उसके संग बेटी का दर्द समझ सके. स्यानी बिटिया के ब्याह की आशा अबकी बरस छोड़ चुकी माँ किशोरी देवी पत्नी मोहन प्रजापति ( मानसिक बीमार ) ने ये बात अपने बिरादरी के लोगो से चौपाल में कही ! ...बिटिया कैसन ससुरे जई !

रानीपुर से निकली ये बात समीप के मोहनपुर गाँव के अध्यापक यशवंत पटेल तक पहुंची ! अध्यापक ने गरीब परिवार से मिलकर माँ को दिलासा दी और उससे ब्याह की तयारी करने को कहा ! ....इस सामाजिक यज्ञ में कुछ चंद फ़कीर जुड़े और अपने - अपने हिस्से का हवन करके इस बिटिया के विवाह को अंतिम सोपान तक पहुँचाया. .....ग्रामीण संस्कृति / रिवाज से सजी - धजी वर की बारात निज निवास बाँदा के डाडीन पुरवा ( जसपुरा ) से पीले रंग के जामे और खजूर की बनी मौर ( पगड़ी ) में थिरकते ग्रामीणों के साथ फूला के दरवाजे पहुंची. क्या लम्बरदार और क्या छोटा किसान जिसने बेटी के दरवाजे खाना नही खाया अपने हिस्से का भोजन बचाते हुए उसने भी गाँव में घूमते समय बरात का नेंग ( न्योछावर ) से दुह्ले का तिलक करके अपनी सहभागिता का अहसास करा दिया.गाँव की बुजुर्ग महिलाओ ने मंगल गीत,नकटौरा,लहकउर आदि गंवई रस्मो को निभाकर विवाह सम्पन्न हुआ.( लड़कियां लडको के लीबास में दुह्ले को भोजन लेकर देर रात द्वारचार के बाद जनवासे में जाती है नेंग के की जुगाड़ में हकदारी से ) ....मोहनपुर के अध्यापक यशवंत पटेल और उनकी पत्नी सुमनलता पटेल ने बिटिया का कन्यादान लिया और अपने सामर्थ्य अनुसार इस ब्याह का खर्चा उठाया....अन्य सहयोगियों में बाँदा के डाक्टर विवेक पाण्डेय,शैलेन्द्र श्रीवास्तव 'नवीन',कुलदीप शुक्ला शामिल रहे....हमारे अभियान की गति वे गाँव वाले और समाज के कुछ साथी होते है जो इंसानियत को अपना धर्म मानते है...यहाँ कोई मजहब,जाति नही होती बस सब समाज होता है....हाँ अबकी बार उन फेसबुकी वादेदारो ने अवश्य निराश किया जिनके कहने पर यह कदम उठाया गया और अंतिम पल में वे बेटी को बिसरा दिए....यहाँ सवाल ये है कि अगर ये बेटियां मात्र उनके ही सहारे ब्याह के लिए कही बैठी हो तो क्या इनकी डोलियाँ पीहर से ससुराल के लिए उठ पाएंगी ? .....'' गुजरो जिस बाग़ से तो दुआ मांगते चलो, जिसमे खिले है फूल वो डाली हरी रहे !'' कोई बिटोली बिनब्याही न रहे !

By: Ashish Sagar