(News) टीकमगढ़ जिले के शुक्लान टौरिया के गाँव वालों ने बना लिया तालाब


गाँव वालों ने बना लिया तालाब


बुंदेलखंड में सरकार के बनाये तालाब भले ही सूखे और वीरान पड़े हो , पर मध्य प्रदेश के टीकमगढ़ जिले के शुक्लान टौरिया गाँव के लोगों ने अपनी मेहनत और लगन से सूखे के हालात में भी गाँव का तालाब ,पानी से लबालब भर लिया है । पहाड़ के किनारे बसे इस गाँव तक पहुँचने के लिए कोई पक्की सड़क नहीं है । इसलिए नेता जी भी चुनावी मौसम में ही यहां आते हैं । अस्सी परिवारों वाले इस गाँव के लोगों को जीवनदाई जल के लिए भी भटकना पड़ता था । आज गाँव का यह तालाब उन्हें सूखे से लड़ने की शक्ति देता है ।

गाँव के एकलौते चंदेलकालीन तालाब में पानी ठहरता ही नहीं था । पहाड़ से जैसा पानी आता था वैसा ही कुछ समय बाद बह जाता था । गाँव वालों की दशा सागर किनारे मीन प्यासी जैसी थी \ कल तक जो तालाब सूखा रहता था अब उसी तालाब में अटखेलियां करते बच्चो को देख हर मन खुश हो जाता है । अब गाँव वालों को पानी के लिए मीलों दूर नहीं जाना पड़ता । नहाने धोने से लेकर कपडे भी अब इसी तालाब पर धुलते हैं । तो प्यासे पशुओं की प्यास भी ये तालाब बुझा रहा है , वहीँ गाँव वालों की प्यास बुझाने के लिए इस तालाब ने गाँव के कुओं का जल स्तर बड़ा दिया है । वो भी इस सूखे के हालात में ।
गाँव के सूर्य प्रकाश शुक्ला बताते हैं की उन्हें यह प्रेरणा पड़ोस के गाँव से मिली जहाँ गाँव वालों ने परमार्थ संस्था के सहयोग से तालाब बनाया था । हमारे यहाँ तो तालाब था उसका भराव श्रोत भी अच्छा था किन्तु पानी रुकता नहीं था । हमने भी संस्था से सहयोग माँगा उन्होने तालाब निर्माण का तकनीक ज्ञान और सहयोग देकर गाँव वालों ने मिलकर तालाब बनवाया । आज दो चार दस गाँव में पीने के लिए भी पानी नहीं है हमारे यहां आज भी पानी है।

गाँव वालों तालाब बंनाने के लिए गाँव की बैठक की । तय किया की अब किसी के सामने हाथ नहीं फैलाएंगे, बहुत फैला लिए सरकार और नेताओ के सामने हाथ ,अब अपने बल से गाँव के तालाब को बनाएंगे । धन की कमी आपस में चन्दा जोड़ कर पूर्ण करेंगे । तालब से जिन लोगों के खेत तक तक पानी पहुंचेगा वे प्रति एकड़ चार सौ बारह रुपये देंगे । गाँव वाले के इस जज्बे को देख कर एक स्वयं सेवी संस्था परमार्थ ने तीन लाख रुपये दे दिए । इस तरह तीन लाख तीस हजार में गाँव का तालाब बन कर तैयार हो गया ।इतना ही नहीं गाँव के लोगों ने इसके रख रखाव की भी योजना बनाई है \ अब वे हर उस किसान से 50-50 रु लेंगे जो इस तालाब के पानी का उपयोग सिचाई के लिए करेगा । इस पैसे से रख रखाव किया जाएगा ।

बुंदेलखंड का टीकमगढ़ वह जिला है जहाँ 1100 से ज्यादा चंदेलकालीन तालाब आज से हजार वर्ष पूर्व (12 वी सदी ) बनाये गए थे ,। सरकारी रिकार्ड में 995 तालाब दर्ज है , । जिनमे से पांच सैकड़ा से ज्यादा तालाब गायब हो गए ,। आज जब द्वार पर अकाल दस्तक दे रहा है , किसान मौत को गले लगा रहे हैं तब लोगों को अपने परम्परागत तालाबों की उपयोगिता समझ आ रही है । पर विडंबना यह देखिये की आम जन को तो तालाब का महत्व समझ आ रहा किन्तु समाज के नीति निर्धारकों को इससे कोई सरोकार नहीं है । यहां तक की सरकार के रिकार्ड में यह पता ही नहीं है की कितने तालाब हैं । सिचाई विभाग के पास जरूर 40 हेक्टेयर से बड़े 88 चंदेल कालीन तालाब हैं । 40 हेक्टेयर से कम के 211 तालाब पंचायत ,नगर पंचायत और नगर पालिका को सौंपे गए थे ,36 राजस्व विभाग के पास ,55 आम निस्तारी और 26 निजी कास्तकारों के कब्जे में हैं । कुल 421 तालाबों के अलावा शेष 564 तालाबों का अस्तित्व समाप्त हो गया जिन का रिकार्ड किसी के पास नहीं है ।

अधिकारियों ने धन की लालसा में लापता तालाबों की खोज नहीं की नए तालाबों का निर्माण की योजनाये बना कर काम शुरू किये गए । बुंदेलखंड पैकेज से सिचाई विभाग ने 6 नए तालाबों का निर्माण कर रहा है । बगाजमाता तालाब , टीलादांत ,करियापाठा ,बंजारी ,सतीघाट , बरुआनाला तालाब का निर्माण कर रहा है । इन तालाबों के निर्माण पर 15483.14 लाख रु व्यय होंगे । लोगों को विस्थापन की त्रासदी भोगना पड़ रही है सो अलग ।

ओरछा स्टेट का 1907 का गजट बताता है की उस दौर में पांच लाख एकड़ से ज्यादा भूमि पर खेती होती थी , जिसमे डेढ लाख एकड़ भूमि की सिचाई इन तालाबों से होती थी । आज के हालात में जिले में 11 हजार हेक्टेयर की सिचाई तालाबों से होती है । तालाबों से नाता तोड़ने का ही परिणाम है वर्षा का अधिकाँश जल नदी नालों के माध्यम से बह जाता है , साथ ही बहा ले जाता है अपने साथ जिले की उपजाऊ मिटटी , और तैयार करता है बीहड़ के निशा । गाँव -गाँव के भरे तालाब ना सिर्फ तापमान का संतुलन बनाते हैं बल्कि जमीन की नमी और भू -जल स्तर भी बनाये रखते हैं ।

By: रवीन्द्र व्यास