(कविता " Poem") बुन्देलखण्ड महिमा by सुरेश चन्द्र कुशवाहा

(कविता) बुन्देलखण्ड महिमा

भारत माँ का हृदय प्रदेश, यह वीर भूमि बुंदेली है ।
यह वीर प्रसूता पुण्य धरा, जहं रहती मौत हथेली है ।।

छत्रसाल आल्हा ऊदल, यह लक्ष्मीबाई की कर्मभूमि ।
यह युद्धभूमि शोणित सिंचित, हो नतमस्तक लो इसे चूम।।

स्वतंत्रता की प्रथम किरण, बुंदेलधरा से फूटी थी ।
तलवार लक्ष्मीबाई की,, चपला सी चली अनूठी थी ।।

जिसके अति बज्र प्रहारों से, कमर अरि की टूटी थी ।
यशगान किया जिसका रिपु ने, यह झाँसी वीर बधूटी थी ।।

संस्कृति यहां की पावन है, इतिहास यहां का अजर-अमर ।
अभिमान से जीवन जीते नर, धरकर निज प्राण हथेली पर ।।

पग-पग पर सुन्दर बने दुर्ग, जो कहें कहानी पल-पल क्षण ।
ये धरा लाल भई शोणित से, जिसने देखे अनगिनते रण ।।

हैं कदम-कदम पर छावनियां, जो सतत राष्ट् की रक्षा में ।
कब कूच करें सीमाओं पर, रहते बस जबां प्रतीक्षा में ।।

कदम-कदम पर तीर्थ यहां, पग-पग पर स्थल मनहारी ।
एतिहासिक सघन धरोहर है, हो इनका संरक्षण सरकारी ।।

मैहर बालाजी चित्रकूट, इन सबकी शोभा है न्यारी ।
पैपोरधाम ओरछा की, खजुराहो की छवि अति प्यारी ।।

जैनतीर्थ देवगढ़ है, पर्वत पर शोभित सोनागिरि ।
पीताम्बरापीठ यहीं पर है, पन्ना में जुगलकिशोर हरि ।।

कर लो बंदन इस भूमि का, निकलां जहं से चिर ज्ञानामृत ।
ऋषियों-मुनियों की तपोभूमि, जो, किये पुण्य साहित्य सृजित ।।

विश्वामित्र अरू व्यास कपिल के, गूंजे पुण्य साधना स्वर ।
बाल्मीकि तुलसी ने भी, की रामकथा कृति अजर-अमर ।।

जन्मे इस भू पर राष्ट्कवि, भूषण केशव जगनिक घासी ।
साहित्व सरोवर में डुबकी, लेलो-लेलो भारतवासी ।।

सघन पर्यटन केन्द्र यहां, विकसित हो सकते पग-पग पर ।
राजस्व प्राप्त हो शासन को, रोजगार के हों अवसर ।।

By : Suresh Chandra Kushwaha