(Poem कविता) "चर्चा अब झांसी का है"  (Charcha ab Jhansi ka hai)


(Poem कविता) "चर्चा अब झांसी का है"  (Charcha ab Jhansi ka hai)


चर्चा अब झांसी का है,
शराफत का , इज्जत का , प्रेम का और शहर सम्मान का है,
यहाँ के लोगो मैं अब भी सलीका गुफ्तगू का है।
मौसम भी यह झाँसी का एहतराम करता है,
यह हर आने जाने बाले को सलाम करता है।


झांसी तो रानी लक्ष्मीबाई की धरा है कहते बुंदेलखंड की शान हैं,
जो यहाँ के हर नागरिक को दिलाती उसकी पहचान है 
बगावत का आलम इस शहर ने उठाया था, 
गुलामी दूर करने का दिया इसने जलाया था।
यही से क्रांति की आजादी की चिंगारी फूटी थी,
वीर लक्ष्मी मर्दानी ने अंग्रेजों को नानी की याद दिलाई थी।

समोसा है, जलेबी है , गुजिया की दस्तकारी है,
बताओ इसशहर में किस जगह बेरोजगारी है।
सदर , इलाइट ओर बड़ेबाजार के जलबे,
पराठे,नॉन कुलचे ,खीर और बादाम के हलबे।
इसके आंचल में मुहब्बत के फूल खिलते है,

इसकी गलियो में भी फरिस्तो के पते मिलते है।
इक सर्द शाम , एक खूबसूरत सी शाम ,
मनिकचोक की गलियां ओर बसस्टैंड का जाम।
बगल में ओरछा एक और गुलाबी सी शाम,
अदब है, जिसकी जुबा पे, संश्कार उसके नाम।

पहले आप है जिसकी रागों में है रज्जाक की गुजिया का नाम,
प्रकाश कुल्फी है यहां और मशहूर है बताशे कुशवाहा के नाम।
बहती है पूर्व मैं बेतवा इहा साथ देते हजारो नोजबान,
ऐसा शहर है हमारा जहाँ सपने भी भरते है उड़ान।

उड़ते है परिंदे सुबह से यहाँ, कहते है इसे बुन्देलखण्डीओ की आन ,
जहा मशहूर झांसी की यह गालिया, बही शहर का किला बढ़ाता है इसकी शान।

सभी कहते है अब इन्शान दौलत का पुजारी है,
मुहब्बत दूर है कोसो गजब की मारामारी है।
शराफत का आलम इस दुनिया में जैसा तैसा है,
बहुत से शहरो में इंसानियत का अर्थ पैसा है।

मगर यह शहर तो इन्शान की उल्फत की भूखा है,
ये चर्चा मेरे शहर का है, ये चर्चा अब झाँसी का है।

सौरभ निरंजन होने का जितना फक्र है मुझको,
उससे ज्यादा बुन्देलखण्डी होने का फक्र है मुझको।
किसी तूफान से डरता नही, रूख मोड़ देता हू,
कोई टूटा हुआ दिल ले के आये जोड़ देता हूं।

BY- Saurabh Niranjan